कर ले ये छोटा सा काम गन्ने में पोक्का बोईंग के के लिए किसान को पछताना नहीं पड़ेगा
कर ले ये छोटा सा काम गन्ने के किसान को पछताना नहीं पड़ेगा
अक्सर करके गन्ने के किसान ये सोच कर हमेशा दुखी रहते हैं कि इस बार हमारे गन्ने की फसल अच्छी होगी या नहीं, दुखी हो भी क्यों ना आखिर किसान के साल भर की मेहनत जो होती है।
तो कर ले ये छोटा सा काम गन्ने के किसान को पछताना नहीं पड़ेगा! अगर आपने ये पोस्ट ध्यान से पढ़ लिया तो आपकी गन्ने की फसल की सारी टेंशन दूर हो जाएगी.
बरसात का मौसम है और गन्ने की फसल में तरह-तरह की बीमारियां लगने की संभावनाएं बनी रहती हैं जिनमें से बीमारियां निम्न प्रकार हैं-
1. गन्ने में पोक्का बोइंग
रोग के लक्षण :-
♦ यह गन्ने की प्रमुख बीमारी है जो वायु जनित फफूंद फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम से फैलती है
♦ पोक्का बोइंग के प्रमुख लक्षण जुलाई-अगस्त, सितंबर माह में बरसात के दौरान दिखाई देते हैं
♦ जिस गन्ने के खेत में पोक्का बोइंग बीमारी आती है, गन्ने के ऊपर भाग की पत्तियाँ मुड़ने लगती हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अच्छे से न होने के कारण धीरे-धीरे सुखने लगती हैं पतियों का रंग धीरे-धीरे हल्का पीला और हल्का हल्का सफेद रंग हो जाता है
♦ पोक्का बोइंग रोग से ग्रसित गन्ने की गोभ में पतिया के बीच में उलझ कर रहती हैं जो किनारे से धीरे-धीरे कट जाती हैं गन्ने की लंबी और पतली हो जाने के कारण छोटे-छोटे एक या दो पतिया ही आगे निकल पाती हैं
♦ ये बिमारी गन्ने की 0238 वैरायटी में अधिकार देखने को मिलती है
गन्ने की पोक्का बोईंग बीमारी को गन्ने का कैंसर भी कहते है.
पोक्का बोइंग रोग के उपचार :-
गन्ने के बीज का चुनाव इस हिसाब से करना चाहिए कि पहले से बीज वाले खेत में पोक्का बोइंग की बिमारी ना हुई हो और जब भी बुआई करे तो बीज को उपचारित करने के बाद ही बुवाई उसकी बुआई करनी चाहिए।
बीज को उपचारित करने के लिए बावस्टिन के घोल का प्रयोग करना चाहिए।
जब खेत में पोक्का बोइंग की बीमारी के लक्षण दिखाई दे तो उसमे 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (COPPER OXYCHLORIDE 50% WP) का छिड़काव करना चाहिए।
अगर उसके बाद भी लक्षण जायदा दिखाई दे तो अजोसिट्रोबिन 11 % + टेबुकोनाज़ोल 18 .3 %(AZOXYSTROBIN 11%+ TEBUCONAZOLE 18.3 % SC) 1 मिली ग्राम / 1 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करने से ये बीमारी समाप्त हो जाती है।
गन्ने की पोक्का बोइंग का वैसे तो कोई स्थाई इलाज नहीं है लेकिन अगर शुरू से ही देखकर की जाए तो ये बिमारी गन्ने में ना के बराबर आती है,बुवाई के टाइम से ही देख रेख की जाए तो इस बीमारी का प्रभाव कम होता है या कभी कभी आती ही नहीं है.
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