गेहू की फसल का परिचय
गेहूं की फसल रबी के मौसम की महत्वपूर्ण फसल है। भारत में गेहू अनाज वाली फसलों में मुख्य फसल है।
गेहू भारत में रबी के मौसम में मुख्य रूप से उत्तरी भारत व उत्तरी पाश्चिमी भारत में उगाई जाती है गेहू की फसल के लिए अच्छे पानी के निकास वाली ओर उपजाऊ भूमि अच्छी होती है ।इसके लिए ठंडे तापमान का मौसम उपयुक्त होता है।
गेहूं की बुवाई का उत्तम समय 15 अम्टूबर से 15 दिसम्बर तक होता है!गेहू की वैरायटी के हिसाब से इसकी बवाई का समये परिवर्तित हो सकता है।
गेहू की फसल के कुछ प्रमुख बिन्दु
गेहू की बुवाई का समय :-
♦ अगेती बुवाई:- 1-10 अक्टूबर से अक्टूबर के अंत तक 140-150 140-से 150 दिनों में तैयार होने वाली वैरायटी की बुवाई की जाती है।
♦ मध्य बुवाई (समय पर बुवाई):- – नवम्बर के पहले, सप्ताह से लेकर नवम्बर के अंत तक बवाई का उत्तम समय होता है जिसमें 115 से 125 दिनों में तैयार होने वाली वैरायटी उपयुक्त रहती है।
♦ गेहूं की पछेती:- पछेती बुवाई ।- दिसम्बर के पुरे महीने पछेती किस्मों की बुवाई की जाती है। गेहूं की किस्मे 100 से 120 दिन में तैयार हो जाती है।
गेहूं की फसल में मिट्टी का चुनाव व खेत की तैयारी
♦ मिट्टी का चुनाव:- गेहू के लिए अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ मिट्टी उत्तम होती है।
♦ खेत की तैयारी
◊ सबसे पहले मिट्टी को पलटने वाले यन्त्र से जुताई करे
◊ इसके बाद कल्टीवेटर या हैरो से 2 बार जुताई कर खेत को भूरभूरी और समतल बना करे जुताई कर सकते है।
◊ गेहू की बुवाई में कल्टीवेटर का उपयोग भी अच्छा रहता है। इससे जमीन समतल और भूरभूरी हो जाती है।
बुवाई से पहले बीज उपचार
◊ गेहू के बीज को खेत में बुवाई से पहले दवाई का प्रयोग करके कीटनाशक व फंफूदीनाशक को अच्छे से बीज के ऊपर डालकर मिला लेना चाहिए।
◊ बीज उपचारित करने से बीज कीटों से बचा रहता है और अंकुरण भी अच्छा होता है। इससे पैदावार बढ़ती है।
गेहूं में सिंचाई:-
◊ गेहु में सिंचाई वर्षा पर निर्भर करती है कि कितनी सिचाई की आवश्यकता होगी
◊ अगर वर्षा न हो तो 6 सिचाई की आवश्यकता पड़ती है।
◊ गेहूं में पहली सिचाई 21-25 दिन पर, दूसरी सिचाई 40-45 दिन पर, तीसरी व चौथी
सिचाई क्रमश: 60 से 65 दिन व 80 से 85 दिन पर होती, हैं व अंतिम सिचाई जब गेहूं अधपके हो तब 110-115 दिन पर करनी चाहिए।
◊ सिचाई अच्छी तरह से करनी चाहिए अगर मिट्टी अच्छे जल निकास वाली हो तो अच्छे से सिचाई करने से फल में जलभराव की समस्या नहीं होती।
खाद और उवर्रक:-
◊ DAP 50kg एक एकड़ में बुवाई के समय बीज के साथ प्रयोग करना चाहिए अगर डीएपी उपलब्ध न हो तो सिंगल सुपर फॉस्फेट भी विकल्प के रूप ए प्रयोग किया जा सकता है।
◊ NPK 50 kg एक एकड़ में लगाना चाहिए अगर खेत में जिंक की कमी नजर आ रही है तो 5 kg /एकड़ के हिसाब से जिंक को यूरिया में मिलाकर डालने से गेहू गहरे हरे रंग के हो जाते और बढ़वार भी अच्छी होती है।
गेहू के खरपतवार व नियंत्रण:-
◊ आज कल मार्किट में अच्छे-२ रसायन उपलब्ध है जिससे गेहू के खरपतवारों को आसानी से नियन्त्रित किया जा सकता है।।
◊ जैसे- चौडी पत्ती के लिए 2-4D 250 ml एक एकड़ में 150 लीटर पानी में इस्तेमाल से सभी चोडी पत्ती के खरपतवार नष्ट हो जाते है।
गेहू के कीट व उनकी रोकथाम:-
चेपा :- यह कीट रस चूसने वाला होता है इसे ग्रामीण क्षेत्रों में अल भी बोलते है। अगर यह अधिक हो जाए तो पत्तियों व बालियो के रस को चूसकर पत्तो को पीला कर देता है।
इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरिकास 2ml /लीटर व थायो 25%.1gm/ लीटर का स्प्रे करना चाहिए!
दीमक :- यह फसल में बिजाई से लेकर फसल के पकने तक प्रभावी होती है इसकी रोकथाम के लिए क्लोरो पाइरिफॉस 1 लीटर को एकड में मिट्टी या रेत में मिलाकर फेंकना चाहिए फिर सिंचाई करनी चाहिए!
गेहू के रोग और उनकी रोकथाम :-
कांगियारी रोग – यह बीजो से होने वाली बीमारी है यह बिमारी नम मौसम में होती हैं। यह हवा से स्वस्थ पौधो को भी प्रभावित करती है। इसके लिए बीज को फफूदीनाशक से उपचारित करके बोना चाहिए
सफेद धब्बा :- इस बिमारी से गेहू के पौधो पर सफेद रंग की धब्बे दिखाई देती है। बाद में यह धब्बे काले हो जाते जाते है जिससे पौधे के पत्ते सुखने लगते हैं। इसके नियंत्रण के लिए टबुकोनाजोल + सल्फर को एक लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करे अगर बिमारी अधिक हो तो 2ml /लीटर प्रोपिकोनाजाल का स्प्रे कर सकते है।
भूरी कुंगी:- गेहूं में इस बिमारी की पहचान पत्तो के भूरेपन के लक्षण हो तो समझ लेना चाहिए कि भूरी कुगी रोग खेत में आ चुका है। इसकी रोकथाम के लिए 2ml/लीटर प्रॉपी व z 78 का इस्तेमाल अच्छा रहता है।
पीलीधारी मुंगी रोगा:- इस रोग को हल्दी रोग भी कहा जाता है क्योकि गेहू की पत्तीयों पर हल्दी जैसा पीला पाउडर बन जाती है। हल्दी रोग की रोकथाम के लिए मैनकोजेब + 2ml/लीटर प्रोपि का स्प्रे से अच्छे परिणाम मिलते है।
करनाल बट :- इस बिमारी को ग्रामीण क्षेत्रो में काला दाना के नाम से जानते है। इसकी रोकथाम के लिए 2ml/ लीटर प्रोपिकॉनजोल का स्प्रे उत्तम रहता है।
फसल की कटाई :-अन्तिम सिचाइ के बाद अप्रैल माह में जब लू चलती है उस समय गेहू की सभी फसले पक कर तैयार हो जाती हैं गेहू में 15 से 20 प्रतिशत नमी वह समय कटाई के लिए उत्तम होता है। कटाई के बाद 3-4 दिन की धूप देने के बाद फसल से थैंसर मशीन की सहायता से गेंहू निकाल लिया जाता है।
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